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 आप भगवान् महावीर का जीवन चरित्र पढ़ रहे हैं। इसमें जन्म कल्याणक का दृश्य दिखाया गया है,अर्थात जब महावीर का जन्म हुआ तो तीनों लोकों में शांति का वातावरण छा  गया था।        कुण्डलपुर नगरी में महारानी त्रिशला के पवित्र गर्भ से जन्मे महावीर का जन्म कल्याणक महोत्सव मनाने के लिए स्वर्ग से सौधर्म इंद्र सम्पूर्ण देव परिवार को लेकर मध्य लोक में आ गए । जिन बालक को ऐरावत हाथी पर लेकर इंद्र राज सुमेरु पर्वत पर गए , वहां उन्होंने पांडुक शिला पर उनका क्षीरोदधि के जल से जन्माभिषेक किया। पुनः उनके वीर और वर्धमान ये दो नाम रक्खे।                                                                             आर्यिका चंदनामती
आप भगवान् महावीर का जीवन चरित्र पढ़ रहे हैं। इसमें जन्म कल्याणक का दृश्य दिखाया गया है,अर्थात जब महावीर का जन्म हुआ तो तीनों लोकों में शांति का वातावरण छा  गया था।        कुण्डलपुर नगरी में महारानी त्रिशला के पवित्र गर्भ से जन्मे महावीर का जन्म कल्याणक महोत्सव मनाने के लिए स्वर्ग से सौधर्म इंद्र सम्पूर्ण देव परिवार को लेकर मध्य लोक में आ गए । जिन बालक को ऐरावत हाथी पर लेकर इंद्र राज सुमेरु पर्वत पर गए , वहां उन्होंने पांडुक शिला पर उनका क्षीरोदधि के जल से जन्माभिषेक किया। पुनः उनके वीर और वर्धमान ये दो नाम रक्खे।                                                                             आर्यिका चंदनामती
 
 
 
            
        
          
        
          
        
 महानुभावों! आप भगवान् महावीर के बारे में पढ़ रहे हैं, अच्युत स्वर्ग के इन्द्र  मध्य लोक में जन्म लेने वाले थे कि यहाँ कुण्डलपुर के राजा सिद्धार्थ की रानी त्रिशला ने रात्रि के पिछले प्रहर में सोलह स्वप्न देखे ।                  तब स्वर्ग से इन्द्रों आकर गर्भ कल्याणक महोत्सव मनाया।                                                                                आर्यिका चंदनामती
       महानुभावों! आप भगवान् महावीर के बारे में पढ़ रहे हैं, अच्युत स्वर्ग के इन्द्र  मध्य लोक में जन्म लेने वाले थे कि यहाँ कुण्डलपुर के राजा सिद्धार्थ की रानी त्रिशला ने रात्रि के पिछले प्रहर में सोलह स्वप्न देखे ।                  तब स्वर्ग से इन्द्रों आकर गर्भ कल्याणक महोत्सव मनाया।                                                                                आर्यिका चंदनामती
 
 
 
            
        
          
        
          
        
 महानुभावों! भगवान् महावीर के पूर्व भवों में आप पढ़ रहे हैं कि वे अभी स्वर्ग में हैं और इधर मध्य लोक की कुण्डलपुर नगरी में स्वर्ग से देवों ने आकर दिव्य नगरी की रचना कर दी ।  उस नगर में सुन्दर नन्द्यावर्त महल सात मंजिल का बना दिया, जिसमे राजा सर्वार्थ और रानी श्रीमती निवास करने लगे ।                  आज से लगभग २६०८ वर्ष पूर्व उन राजा सर्वार्थ के पुत्र सिद्धार्थ का विवाह वैशाली के राजा चेटक की पुत्री त्रिशला के साथ हुआ ।  पुनः सिद्धार्थ और त्रिशला सुख पूर्वक जीवन व्यतीत करने लगे। आगे आप जानेंगे कि कुण्डलपुर में क्या होता है -----                                                                    आर्यिका चंदनामती
         महानुभावों! भगवान् महावीर के पूर्व भवों में आप पढ़ रहे हैं कि वे अभी स्वर्ग में हैं और इधर मध्य लोक की कुण्डलपुर नगरी में स्वर्ग से देवों ने आकर दिव्य नगरी की रचना कर दी ।  उस नगर में सुन्दर नन्द्यावर्त महल सात मंजिल का बना दिया, जिसमे राजा सर्वार्थ और रानी श्रीमती निवास करने लगे ।                  आज से लगभग २६०८ वर्ष पूर्व उन राजा सर्वार्थ के पुत्र सिद्धार्थ का विवाह वैशाली के राजा चेटक की पुत्री त्रिशला के साथ हुआ ।  पुनः सिद्धार्थ और त्रिशला सुख पूर्वक जीवन व्यतीत करने लगे। आगे आप जानेंगे कि कुण्डलपुर में क्या होता है -----                                                                    आर्यिका चंदनामती 
 
 
 
            
        
          
        
          
        
 महानुभावों! आप भगवान् महावीर के पूर्व भवों के बारे में जाना है कि उन्होंने कैसे अपने जीवन का उत्थान किया, महावीर बनने  से द्वितीय भव पूर्व सोलहवें स्वर्ग में अच्युतेंद्र थे। वहां देवांगनाओं के साथ सुख भोगते वे कभी-कभी मध्यलोक में भगवान् के समवसरण में दर्शन करने भी जाया करते थे।                समवसरण में भगवान् की दिव्यध्वनी सुन कर तत्त्व चिंतन करते हुए वहां अपना समय व्यतीत करते थे।  आगे चल कर वे भगवान् महावीर की पर्याय में आने वाले हैं, अतः आप अगले ब्लॉग में उनका जीवन चरित्र पढेंगे।                                                                                               आर्यिकाचंदनामती
   महानुभावों! आप भगवान् महावीर के पूर्व भवों के बारे में जाना है कि उन्होंने कैसे अपने जीवन का उत्थान किया, महावीर बनने  से द्वितीय भव पूर्व सोलहवें स्वर्ग में अच्युतेंद्र थे। वहां देवांगनाओं के साथ सुख भोगते वे कभी-कभी मध्यलोक में भगवान् के समवसरण में दर्शन करने भी जाया करते थे।                समवसरण में भगवान् की दिव्यध्वनी सुन कर तत्त्व चिंतन करते हुए वहां अपना समय व्यतीत करते थे।  आगे चल कर वे भगवान् महावीर की पर्याय में आने वाले हैं, अतः आप अगले ब्लॉग में उनका जीवन चरित्र पढेंगे।                                                                                               आर्यिकाचंदनामती