Friday, January 1, 2010

अमूल्य वचन


नित्य निरंजन देव , परम हंस परमात्मा । तुम पद युग की सेव , करते ही सुख संपदा॥ १॥
नित्य निरंजन देव , अखिल अमंगल को हरे । नित्य करुँ मैं सेव , मेरे कर्मांजन हरें॥ २॥
गणिनी ज्ञानमती
जम्बूद्वीप- हस्तिनापुर

1 comment:

  1. क्या में जान सकती हू की रात को प्रदक्षिणा हो सकती है की नही?

    ReplyDelete