एक मेंढक अपने मुख में कमल पंखुड़ी लेकर भगवान् महावीर के समवसरण के दर्शन करने चला । मार्ग में वह राजा श्रेणिक के हाथी के पैर के नीचे दब कर मर गया ।
भगवान् की भक्ति के प्रभाव से वह मर कर देव हो गया ,वहाँ उसे याद आते ही सर्व प्रथम वह महावीर के समवसरण में आकर भक्तिपूर्वक नाचने लगा , उसके मुकुट में मेंढक का चिन्ह देखकर राजा श्रेणिक ने गौतम गणधर से उसके बारे में पूछा ।
श्री गौतम स्वामी उन्हें मेंढक की जिनेन्द्र भक्ति के बारे में बताया, तो वहाँ बैठे सभी नर- नारी बहुत प्रभावित हुए और सभी ने भगवान् के दर्शन का नियम लिया।
बंधुओं ! आप भी इस कथानक से शिक्षा लेकर मन्दिर दर्शन का नियम लेकर अपने जीवन को सफल बनावें , यही मंगल प्रेरणा है।
साध्वीचंदनामती
जम्बूद्वीप- हस्तिनापुर
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