Friday, March 26, 2010

भगवान् महावीर पांचवें भव पूर्व !

स्वर्ग से अपनी आयु पूरी करके देव ने मनुष्य भव धारण कर धातकी खंड द्वीप में प्रियमित्र चक्रवर्ती बन कर राज्य संचालन किया। पुनः वहां वैराग्य हो गया,तो दीक्षा धारण कर तपस्या की और समाधि पूर्वक शरीर त्याग करके वे बारहवें स्वर्ग में देव हो गए ।
महानुभावों! भगवान् महावीर के इन भवों से हमें शिक्षा लेना है कि कभी न कभी जीवन में संयम अवश्य धारण करना चाहिए ताकि एक दिन हम भी भगवान् बन सकें।
आर्यिका चंदनामती

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