नित्य निरंजन देव , परम हंस परमात्मा । तुम पद युग की सेव , करते ही सुख संपदा॥ १॥
नित्य निरंजन देव , अखिल अमंगल को हरे । नित्य करुँ मैं सेव , मेरे कर्मांजन हरें॥ २॥
गणिनी ज्ञानमती
जम्बूद्वीप- हस्तिनापुर
क्या में जान सकती हू की रात को प्रदक्षिणा हो सकती है की नही?
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