वह देव स्वर्ग से च्युत होकर मध्य लोक में आकर राजा नन्दिवर्धन के पुत्र नंदन हुए । वहां मुनि से दीक्षा लेकर खूब ज्ञानाराधना की पुनः अंग - पूर्वों का ज्ञान प्राप्त करके सोलह्कारण भावना भाई और तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध करके अंत में समाधि मरण के द्वारा स्वर्ग में अह्मिन्द्र पद प्राप्त किया।
आर्यिका चंदनामती
Saturday, March 27, 2010
भगवान् महावीर चतुर्थ भव पूर्व !
महानुभावों! आपने भगवान् महावीर के पूर्व भवों के चित्रों को देख कर जाना है कि वह किस प्रकार से पुरुषार्थ करके अपने जीवन को महान बनाने में लगा है, वे देव गति के सुखों को भोग रहे हैं।
जैन पुराणों में वर्णन आता है कि स्वर्ग में सूर्यप्रभ देव दिव्य सुखों का अनुभव करते हुए अपनी देवांगनाओं के साथ मध्य लोक में आकर सम्मेदशिखर आदि तीर्थ क्षेत्रों की वंदना किया करते थे।
यह उनके पुण्य का प्रभाव ही था । इस प्रकार के पुण्य का संचय करने से शीघ्र मोक्ष सुख की प्राप्ति होती है।
आर्यिका चंदनामती
जैन पुराणों में वर्णन आता है कि स्वर्ग में सूर्यप्रभ देव दिव्य सुखों का अनुभव करते हुए अपनी देवांगनाओं के साथ मध्य लोक में आकर सम्मेदशिखर आदि तीर्थ क्षेत्रों की वंदना किया करते थे।
यह उनके पुण्य का प्रभाव ही था । इस प्रकार के पुण्य का संचय करने से शीघ्र मोक्ष सुख की प्राप्ति होती है।
आर्यिका चंदनामती
Friday, March 26, 2010
भगवान् महावीर पांचवें भव पूर्व !
स्वर्ग से अपनी आयु पूरी करके देव ने मनुष्य भव धारण कर धातकी खंड द्वीप में प्रियमित्र चक्रवर्ती बन कर राज्य संचालन किया। पुनः वहां वैराग्य हो गया,तो दीक्षा धारण कर तपस्या की और समाधि पूर्वक शरीर त्याग करके वे बारहवें स्वर्ग में देव हो गए ।
महानुभावों! भगवान् महावीर के इन भवों से हमें शिक्षा लेना है कि कभी न कभी जीवन में संयम अवश्य धारण करना चाहिए ताकि एक दिन हम भी भगवान् बन सकें।
आर्यिका चंदनामती
महानुभावों! भगवान् महावीर के इन भवों से हमें शिक्षा लेना है कि कभी न कभी जीवन में संयम अवश्य धारण करना चाहिए ताकि एक दिन हम भी भगवान् बन सकें।
आर्यिका चंदनामती
Sunday, March 21, 2010
छठे भव पूर्व भगवान् महावीर !
Saturday, March 20, 2010
सातवें भव पूर्व भगवान् महावीर!
Friday, March 19, 2010
भगवान् महावीर कैसे बने?
भगवन महावीर कैसे बने?
Sunday, March 14, 2010
भगवान् महावीर कैसे बने ?
महानुभावों! आपने भगवान् महावीर के पिछले चार भवों के बारे में जाना है। पांचवे भव में वह स्वर्ग में देवता होगए , वहां वे दिव्य सुखों का उपभोग करते हुए अपना जीवन व्यतीत करने लगे।
देखो! एक बार मुनि के संबोधन को पाकर सिंह जैसे क्रूर पशु ने भी अपना जीवन सुधार लिया, तो आप मनुष्य पर्याय से अपना हित करने की प्रेरणा अवश्य प्राप्त करें।
आर्यिका चंदनामती
देखो! एक बार मुनि के संबोधन को पाकर सिंह जैसे क्रूर पशु ने भी अपना जीवन सुधार लिया, तो आप मनुष्य पर्याय से अपना हित करने की प्रेरणा अवश्य प्राप्त करें।
आर्यिका चंदनामती
Thursday, March 11, 2010
bhagvaan Mahavir kaise bane?
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