
जैन पुराणों में वर्णन आता है कि स्वर्ग में सूर्यप्रभ देव दिव्य सुखों का अनुभव करते हुए अपनी देवांगनाओं के साथ मध्य लोक में आकर सम्मेदशिखर आदि तीर्थ क्षेत्रों की वंदना किया करते थे।
यह उनके पुण्य का प्रभाव ही था । इस प्रकार के पुण्य का संचय करने से शीघ्र मोक्ष सुख की प्राप्ति होती है।
आर्यिका चंदनामती
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