स्वर्ग से अपनी आयु पूरी करके देव ने मनुष्य भव धारण कर धातकी खंड द्वीप में प्रियमित्र चक्रवर्ती बन कर राज्य संचालन किया। पुनः वहां वैराग्य हो गया,तो दीक्षा धारण कर तपस्या की और समाधि पूर्वक शरीर त्याग करके वे बारहवें स्वर्ग में देव हो गए । महानुभावों! भगवान् महावीर के इन भवों से हमें शिक्षा लेना है कि कभी न कभी जीवन में संयम अवश्य धारण करना चाहिए ताकि एक दिन हम भी भगवान् बन सकें। आर्यिका चंदनामती
स्वर्ग के सुखों का अनुभव करते हुए भगवान् महावीर के जीव ने वहां जिनेन्द्र भगवान् की खूब भक्ति की, और असीम पुण्य का संचय करते रहे। यह पुण्यात्माओं का जीवन हम सब के लिए अनुकरणीय रहता है । आर्यिका चंदनामती
राजा हरिषेण की पर्याय में उन्होंने श्रुत सागर मुनि के पास जाकर जैनेश्वरी दीक्षा धारण कर सल्लेखना मरण पुर्वक शरीर का त्याग किया और स्वर्ग में देव हो गए। इससे शिक्षा ग्रहण करना है कि मनुष्य गति पाकर संयम अवश्य पालन करना चाहिए। आर्यिका चंदनामती
भगवान् महावीर ने धीरे - धीरे अपने जीवन में प्रगति करते हुए आठवें भव में स्वर्ग में जन्म धारण करके देव बन गए , वहां दिव्य सुखों का अनुभव करके अकृत्रिम जिन मंदिरों के दर्शन करते हुए प्रतिमाओं की पूजा में अपने जीवन को व्यतीत करने लगा। आर्यिका चंदनामती